ऐ ज़िन्दगी इतना बता,
तू इतनी खफा क्यूँ है ।।
जीते रहने की मुझे,
दे रही यूँ सजा क्यों हैं ।।
दर्द को तबस्सुम में समेटे ,
जाने क्या सफ़रनामा लिख रहा हूँ ।।
अक्स में मसर्रत खोजता,
इक जनाज़ा लिए चल रहा हूँ ।।
ख्वाहिशो का मुक़म्मल होना,
अर्श में अफसून सा लगता है ।।
मेरे अश्क़ो की ना परवाह तुझे,
इतनी अय्यारी से आशियाना राख कर रही क्यों है ..
ऐ ज़िन्दगी इतना बता,
तू इतनी खफा क्यूँ है ।।
जीते रहने की मुझे,
दे रही यूँ सजा क्यों हैं ।।
- डॉ. अंकित राजवंशी
तू इतनी खफा क्यूँ है ।।
जीते रहने की मुझे,
दे रही यूँ सजा क्यों हैं ।।
दर्द को तबस्सुम में समेटे ,
जाने क्या सफ़रनामा लिख रहा हूँ ।।
अक्स में मसर्रत खोजता,
इक जनाज़ा लिए चल रहा हूँ ।।
ख्वाहिशो का मुक़म्मल होना,
अर्श में अफसून सा लगता है ।।
मेरे अश्क़ो की ना परवाह तुझे,
इतनी अय्यारी से आशियाना राख कर रही क्यों है ..
ऐ ज़िन्दगी इतना बता,
तू इतनी खफा क्यूँ है ।।
जीते रहने की मुझे,
दे रही यूँ सजा क्यों हैं ।।
- डॉ. अंकित राजवंशी
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