आज फिर दिल में जगी एक उम्मीद है,
की होगा फिर सवेरा, बसेगा मेरा आशियाना...
खोया रहा हूँ बरसो से जीने की जिस कशमकश में,
आज वही रात रौशनी दिखाने लगी है...
जाने क्या आग थी जो जले जा रही थी,
मुझे तो चिंगारी भी डराती रही है...
तज़ब्जुब थे जो ये रेंगते सन्नाटे,
आज वही बदलते प्रतीत हो रहे है...
वक़्त की ये अँगडाई,
बदलते मौसम,
बारिश के छींटे,
उगता सूरज,
जाने क्यों सब सुहाने लगा है,
शायद सच ही कहते है,
बस नज़र के धोखे ही तो है...
वर्ना,
ना ही कोई रंग है, ना कोई रूप,
ना सौंदर्य, ना ही कोई कुरूप...
आंखे बदल के देखो,
कितने हसीन है ये आँगन,
मैंने भी आज ही जाना है इन्हें,
ख़ुशी बाँटना ही इनका जीवन है,
अचल, अटल, निष्पाप, निस्वार्थ...
सिखा है आज इनसे मैंने,
जीवन का सत्यार्थ,
सेवा का चरितार्थ,
की ख़ुशी जीवन में नहीं है,
अपितु जीवन ही ख़ुशी में है...
अनायास सोचने लगा की क्या मेरे जीवन में दुःख है?
और फिर ज़ाले बुनती उस मकड़ी को देखकर खुद ही शर्मसार होने लगा,
तब जाना की ये दुःख नहीं छलावा मात्र है,
अनजाने ही जिजीविषा की कही कमी है...
दुःख के पीछे कब तक रोयेगा,
जितना रोयेगा, उतनी ही पढेगी ये पीड़,
इस हसीन सुन्दरता को पहचानो,
मैं,तुम, हर जन रंगरेज है,
बस जीते चलो,
अपनी दुनिया को रंगीन बनाते रहो...
क्यूंकि ज़िन्दगी हसीन है, मुश्किल नहीं...
- डॉ. अंकित राजवंशी
wow i m amazed...
ReplyDeletedis is really beautiful...
Tanupriya
Thankyou TP...
Deletekya baat hai dr
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